The Need of Vocationalisation for Economic Development
आज के युग की परिसिथतियों को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि शिक्षा का स्वरूप ऐसा होना चाहिए जो छात्र-छात्राओं को आर्थिक दृषिट से आत्मनिर्भर बना सके। देश के …
आज के युग की परिसिथतियों को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि शिक्षा का स्वरूप ऐसा होना चाहिए जो छात्र-छात्राओं को आर्थिक दृषिट से आत्मनिर्भर बना सके। देश के नवयुवकों की बढ़ती बेरोजगारी को दूर करने हेतु शिक्षा का व्यावसायीकरण बहुत आवश्यक हो गया है।
व्यावसायीकरण का अर्थ है किसी व्यवसाय में प्रशिक्षण या हम कह सकते हंै कि विधार्थियों को कोर्इ ऐसा व्यवसाय सिखाना ताकि वे अपने जीवनयापन के लिए अपनी आजीविका कमा सकें। शिक्षा के साथ-साथ ऐसे कोर्सेज की भी व्यवस्था की जानी चाहिए, जो छात्रों को शिक्षा के साथ-साथ किसी व्यवसाय में कुशल बना सके। इसलिए देश में एक विशेष प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए क्योंकि यह विशेष शिक्षा अर्थात व्यावसायिक शिक्षा ही देश की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सहायक सिद्ध हो सकती है।
भारत के आर्थिक विकास के लिए हमें विधार्थियों को व्यावसायिक तथा व्यावहारिक रूप से कुशल बनाना होगा ताकि वे औधोगिक तथा तकनीकी उन्नति की योजनाओं में सार्थक योगदान कर सकें। हमारे देश में बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही है। अत: व्यावसायीकरण से शिक्षित लोगों में बेरोजगारी की समस्या को दूर किया जा सकता है। महात्मा गाँधी ने कहा है कि शिक्षा बेरोजगारी के विरूद्ध एक प्रकार का बीमा होना चाहिए।
माध्यमिक शिक्षा का व्यावसायीकरण करने से विधार्थी अपनी पसन्द तथा रूचि के अनुरूप प्रशिक्षण ले सकते हैं। यह उनके लिए रोजगार के अवसर प्रदान कराने के साथ-साथ उनकी क्षमताओं को भी विकसित कर सकेगा। विधार्थियों के गुणों को भी प्रशस्त करने में सहायक हो सकेगा, जिससे उन्हें आत्म-सन्तुषिट प्राप्त हो सकेगी। यदि मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं और वह आर्थिक रूप से सबल हो जाता है तब उसका नैतिक तथा सांस्कृतिक विकास भी स्वत: ही हो जाता है।
शिक्षा को ज्यादा से ज्यादा उपयोगी बनाने के लिए व्यावसायीकरण अति आवश्यक है क्योंकि यह शिक्षा की प्रक्रिया को दिशा प्रदान करता है। इसी कारण से शिक्षा व्यावहारिक रूप से विधार्थियों के लिए उपयोगी हो सकती है। व्यकित व्यावहारिक ज्ञान का उपयोग अपने रोजगार संबंधी कार्यक्षेत्र में कर सकता है तथा दूसरे क्षेत्रों में भी कार्य करने के बारे में सोच सकता है। ऐसा करने से उसका बौद्धिक विकास हो सकेगा।
वर्तमान में माध्यमिक शिक्षा का स्वरूप अत्यधिक शैक्षिक होने के कारण इसका मुख्य उíेश्य विधार्थियों को महाविधालयों तथा विश्वविधालयों में प्रवेश दिलाने मात्र तक ही सीमित होकर रह गया है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में पढ़ कर महाविधालयों में जाने वाले छात्रों की संख्या 50 प्रतिशत भी नहीं होती है। माध्यमिक शिक्षा के तुरन्त बाद वे रोजगार प्राप्त करने की सोचते हैं, इसलिए शिक्षा कार्यक्रम को व्यावसायिक स्वरूप देकर इस दिशा में विधार्थियों को उनकी रूचि व योग्यता के अनुसार प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
Sarita Pareek