इस सवाल के जवाब में आप कहेंगे भगवान। परन्तु मैं आपके जवाब से संतुष्ट नहीं हूँ। आज दिल और दिमाग दोनों भारी हैं क्योंकि मौत का डर दुनिया का सबसे बड़ा डर होता है। अचानक आर्इ प्राकृतिक आपदा से हम सब डरे हुए हैंं, भगवान को कोस रहे हैं, भगवान से मिन्नतें कर रहे हैं, पर इन आपदाओं का कारण खोज रहे हैं ? नहीं।
मैं रोज अपने घर से 10 कि.मी. का सफर तय करके अपने कालेज आती हूँ। रास्ते में अलग-अलग अनुभव होते हैं जैसे – ट्रैफिक जाम का। जाम में खड़े-खड़ें मेरा चिन्तनशील दिमाग शोर मचाता है कि ये जाम में जितनी भी कारें खड़ी हैं यही इस जाम की जिम्मेदार हैं। एक कार – एक आदमी यह कौनसी सभ्यता हमने अपना ली है कि हम साझा करना ही भूल गये। जिस कार में पाँच लोग बैठ सकते हैं उस कार में एक व्यकित उसकी शोभा बढ़ा रहा है। इन प्रतिष्ठासूचक गाडि़यों के लिए र्इंधन कहाँ से आया ? पृथ्वी हमारी माँ है और हम उसकी स्वार्थी सन्तानें। जो माँ के कलेजे को खोद-खोद कर अपनी जरूरतें पूरी कर रहे हैं तभी तो पृथ्वी रूपी माँ का कलेजा हिल रहा है। इसलिए मेरे मन में विचार आता है कि क्यों ना कोर्इ ऐसा अभियान चलाऊँ जो लोगों को कार साझा के लाभ समझा सके और शायद हम अपनी माँ का दर्द कम कर सकें।
इन्हीं विचारों के साथ मैं मेरे गन्तव्य की ओर बढ़ जाती हूँ। पर आज ये विचार आपसे साझा करने का मन किया क्योंकि दुनिया मातम मना रही है, सरकार राहत में लग रही है, और हम अपने-आप में मसरूफ हैं पर हमें भी अपनी भागीदारी निभानी होगी केवल सामाजिक नेटवर्क पर मोमबत्ती लगाने से हमारे कत्र्तव्यों की इतिश्री नहीं हो सकती।
हमें अपने कत्र्तव्यों को समझना होगा तभी हम अपने-आप को, अपने परिवार को, अपनी पृथ्वी बचाकर खुशहाल जिंदगी व्यतीत कर सकेंगे।
Dr. Shipra gupta